25 March 2015

एक सुबह की कहानी … !!!

एक सुबह की कहानी … !!!

ये कहानी एक आम सुबह की है। कुछ दिनों से ऑफिस में कुछ गरमा गर्मी मची है।   सुबह उठते ही ये ख्याल आता की जंग का एक और दिन ....!!! थोड़ी मायूस सी थी वो सुबह।  उठते ही ख्याल आया, उफ़ फिर वही मारा मरी की ज़िन्दगी ,  दुःख ,  कलेश , घृणा  से जुंजति रोजी रोटी की दुनियां। कहने को तो ऑफिस मैं काम करते हैं पर वो जगह किसी जंगल से कम नहीं , हाँ वही जंगल जहाँ हर ताकतवर जानवर छोटे और कमज़ोर जानवर को खा जाता है।
बचने  का एक ही उपाय है,  खरगोश बनना पड़ेगा, हाँ वही खरगोश जो  लोमड़ी  को अपनी बुद्धिमानी से हरा दिया करता था बचपन की उन कहानियों में। हर दिन का सफर बस से ही तय किया करती थी । कुछ खोयी खोयी सी थी मनो तूफान सा उठा हो मन में और हलचल मचा रहा है। गाने सुनते सफर अच्छा काट जाता था पर उस दिन  वो भी नहीं भा रहा था, सो खिड़की से बस यूँ ही आँखें बहार झांक रही थी।

सहसा एक दृश्य ने मुझे आकर्षित किया - " एक व्यक्ति बैसाखी लिए, हलके मैले कपडे पहने इतनी सुबह रास्ता पर करने की रख देख रहा था लगा की उसे भी कहीं जल्दी पहुंचना था", यूँ ही सवाल आया मन में - क्या काम होगा ?जो सवेरे - सवेरे निकल गया, साथ किसी को लेलेता अकेले क्यों? ऐसी क्या व्यस्तता थि ?

प्रश्न मन में लिए गाड़ी कुछ दूर चली ही थी की - " कुछ लोग बड़ी मेहनत से माथे पर गन्दा मैला लिए सुबह सुबह शेहेर साफ़ कर रहे थे, न तो उन्हें घृणा हो रही थी, ना कोई  क्षोभ , ये शायद उनके रोज़ी रोटी का उपाय था।  ये तो इनके परिश्रम की कहानी थी की इतनी सुबह सुबह वो निकल पड़े अपने जीवोपार्जन के जुगाड़ में।

मनो किसी ने झकझोड़ दिया मुझे।  आज मेरी यात्रा का ये अंतिम सिख नहीं थी कुछ कहानी और बाकि है -
"एक बूढी औरत उम्र काम से काम 75 -80 . माथे पर एक बड़ा सा टोकरा लिए कुछ बेचने निकली थी , अब धूप भी काफी तेज़ हो चली थी गर्म का महीना था , लाठी का सहारा ही था बस, मन जैसे कचोट दिया इस दृश्य ने की कैसा बेटा होगा, कैसी बहु , या पति की इन्हे इतना संघर्ष करना पड़ रहा है, या फिर क्या कोई नहीं है जो इनसे  ज़िमेदारी का बोझ लेले इस उम्र में ?

आँखें नाम सी हो गयी गयी थि। पर एक बची को देख मुस्कुरा उठी मैं  एक छोटी सी skirt , head ribbon, white shirt , अपनी माँ के साथ थी शायद बस की प्रतीक्षा कर रही थी , बच्चों की हंसी देख मनो मुग्ध हो  हूँ में, पर ये क्या ?कुछ पल बाद महसूस हुआ की वो पयरि सी बच्ची एक "special child " थी माँ का हाथ थामे  सुबह सुबह तैयार हुए बड़े उत्साह से बस की प्रतीक्षा  कर रही थी , अजीब सा सहस दे गयी मुझे उसकी भोली सी मुस्कान....!!!!

 मैं बस हंस पड़ी..... !!! सच हंस पड़ी खुद पर।  खुद के क्षोभ पर,  मेरी सुबह की मायूसी पर , मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था , भगवन की दया से सब कुछ था फिर भी मैं दुखी थी मायूस थी, जो है उसके लिए कहाँ सोचा ? जीवन के छोटी मोटी समस्या को एक विशाल काय रूप गढ़ दिया था मनो।  उस वृद्धा , वो श्रमिक , वो अपांग व्यक्ति , और उस बच्ची की मुस्कान ने मनो मेरी आँखें खोल दी।

 एक व्यंग कास गए मुझ पर और शायद जाते जाते ढाढस भी बंधा गए की लेहलों का जो डांट कर सामना कर जाये वही विजयी कहलाता है।  उसकी अस्तित्व की गाथा मनुष्य स्वयम लिखता है...... खुद गड़ता है।  जो है पास ,जो मिला है ईश्वर से, उसका सम्मान करना , समस्या का सामना करना जी जीवन है।



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