25 March 2015

नन्ही सी मुस्कान....!!!!


मेरी ज़िन्दगी !! हाँ ज़िन्दगी चल रही थी सीधी सपाट रेल की पटरी सी दूर से देखो तो दोनों छोर जैसे  मिल  गए हों पर वास्तव  कुछ और है ......!!!

ऑफिस से घर और घर से ऑफिस , रोज़ वही सड़क, वही पेड़, वो अनजान लोग हर दिन एक ही जगह दीखते।  बस से ऑफिस जाते हुए ये मनो रोज़ का नज़ारा था ऑफिस बड़ी बोरियत सी ज़िन्दगी थी पर चैन घर पर भी कहाँ था ४-५ दिनों की लम्बी छुट्टी में  तो मनो दीवारें घूरने लगती हैं और दरवाज़ा पूछता है कब निकलोगी ?

वैसे अकेली रहती हूँ , आत्मनिर्भर हूँ , थोड़ी स्वाभीमनी भी, अपने आत्मा सम्मान से बहुत प्रेम है, तो मित्रों का चयन भी बड़े धयान से ही करती हूँ , 34 की हो गयी हूँ  , single हूँ, कुछ दिन पहले ही मिन्नी  (मेरी बचपन की दोस्त) की बेटी से मिली 6 साल की है बड़ी प्यारी जब भी जाती हूँ लिपटी रहती है मुझसे , कभी कहानी , कभी chocolate की ज़ीद , कभी न मनो तो प्यारे से आँखों में ढेर सारा आँसू  भर कर रूठ जाती , फिर तो मांग पूरी करनी थी, तो मासी  बोलकर लिपट जाती, रात भर जागती लड़ती अपनी मम्मी से की please मासी के पास सोने दो। बहुत हंसी अति मुझे और मज़ेदार बात ये की मुझे और मिन्नी को बातें ही नहीं करने देती इतनी शरारती थी। बेचारे हम एक दूसरे का चेहरा देखते और उसकी मम्मी उसे ग़ुस्से से देखती और वापस मेरी हंसी निकल जाती, फिर हम सब खिल खिला उठते।  १-२  दिन का ही जाना होता था साल में वो पंजाब में रहती थी और मैं शिमला में।  फिर जाने के दिन मिन्नी की बेटी लिपट कर आंसूं बहती , मत जाओ ना मासि  please , मैं बदमाशी नहीं करुँगी।  पगली थी पर बहुत प्यारी , उसे बहलाती फुसलाती अगली बार ढेर सरे गिफ्ट्स का प्रॉमिस कर के भारी मन से विदा होती।

उस नन्ही सी बच्ची का मोह मुझे हर साल उससे मिलने को विवश कर जाता , उसकी मुस्कान में अपने जीवन की छाँव मिलती मुझे।

कभी कभी प्रश्न उठता मन मैं जीवन में प्रेम में तो सफलता नहीं मिली, फिर विश्वास मनो काम सा गया विवाह में , अब तो उस विश्वास की कब्र भी खुद गयी है।  देखते देखते  जीवन के कई साल अकेले बिता लिए , कोई क्षोभ  नहीं है मुझे बस आश्चर्य  है !!!!

क्या जीवन मैं किसी पुरुष के होने से ही मातृत्व की इच्छा पूरी  हो सकती है ?? और अगर कोई ना मिला तो ?
जीवन के इस अध्भूत अनुभव  को क्या कभी सार्थक अर्थ  नहीं मिलेगा?  मन में एक प्रबल इच्छा ने जन्म लिया
दृढ निश्चन ने आगे बढ़ने की प्रेरणा । जीवन के इस अनुभव को मैं  मन से अपनाना चाहती  थी।  मैंने तय कर लिया - "I will become a Single Mother"...!!!

जुट गयी प्रयास में ..... और जाना की हो सकता है IVF  के माध्यम से … डॉक्टर्स से सलहा ली और उन्होंने भी ढाढस बाधाया, इस सब से पहले घर - परिवार को मानना था , दोस्तों को समझाना था की उनकी ज़रूरत है  मुझे अकेले नहीं कर सकती मैं .... मुश्किलें आयीं क्यूंकि हमारा समाज ऐसे निर्णय को स्वीकार नहीं करता और ना ही स्वागत। पर मैं कहीं गलत नहीं थी।  कहीं  भी नहीं। जीवन इस निर्णय के सामने आसान तो नहीं होगा पर मैं निकल पड़ी थी अपने मातृत्व की लालसा को पूरा करने स्वछंद , लहरों से लड़ते झगड़ते।

और आज इस निर्णय को लिए ३ साल हो गए हैं, मेरी बेटी की प्यारी सी मुस्कान मुझे उसके होने और अपने निर्णय पर गर्व का अनुभव दिलाता है।

A big Thanks to https://housing.com/.... to keep us inspiring to write....;) :) Thanks a tonnnnnn...!!!



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