21 March 2015

शून्या सी.......!!!!!


है ये प्रारंभ या शेष , 

सागर के तट क्या बता सकते  हो  

तट का ये छोर तुम्हारी यात्रा का शेष है?  या प्रारंभ..?

नभ क्या तुम बता सकते हो तुम्हारे आदि और अंत की कथा?

धरा भी मौन सी.. मेरे प्रश्नों का उत्तर ना दे सकी
कष्ट, पीढा तुम तो मौन ना रहो ,
तुम्हारा होना सुखो का अंत है या

उनके आने का आभास......?
समृद्धि, वर्चस्व शांति का आगमन है या समाप्ति ?
मृत्यु आत्मा की यात्रा का अंत है या प्रारंभ....?
कई  ऐसे असीम प्रश्नों के उत्तर की खोज में मैं
शून्या सी.......!!!!!
खुद के शेहेर से दूर office trip में  निकल पड़ी थी शायद कुछ सवालों का जवाब ढूंढने रोज़ की व्यस्त ज़िन्दगी से दूर , ज़िन्दगी में  ये पहली बार था जब यूँ निकली थी.. इन 29 सालों  में  ये पहली  बार ही तो था , ज़िन्दगी इतनी तेज़ भाग रही थी की कभी-कभी रुक कर भगति दौड़ती ज़िन्दगी को देखने का अलग ही मज़ा है उसी मज़े की  तलाश में… "मैं अंशी" निकल पड़ी थी।
हँसते खेलते निकली हमारी  कार, गाते झूमते मस्ती करते सब मगन थे याद है मुझे इन सब के  बीच मैं भी खो जाती ,,,उस भगति हुयी ज़िन्दगी से थोड़ा ब्रेक मिला तो  हो ली खुदके संग।  खुद को पाने की खोज में  मानो  बही चली जा रही थी भगते दौड़ते पेड़,,, लोग,,, सब को पीछे छोड़ते मैं सफर कर रही थी खुद के साथ। … 
I was close to me, close to my friends, n very very close to the nature.. फिर रात के 11 बजे हम पहुंचे हमारे डेस्टिनेशन पर।  थके हारे  थे पर  energy down नहीं थी किसी की भी , we all were so excited होटल के रूम से कुछ आवाज़ सुनाई दे रही थी… ध्यान से सुनने  की कोशी करने लगी..... वो आवाज़ थी समादर की.…!!!! ये मेरे लिए पहली बार था जब मेरा आमना सामना होगा समादर के साथ. रात भर गप्प-शाप चली हंसी मज़ाक बहुत मज़ा आया। फिर सुबह के 4 बजे  हमने तय किया की समंदर की सैर की जाये और sunrise देखा जाये मैं भी पहुंची। ।ओर जो देखा.… देख कर  दांग  रह गयी।  आसमान में  बदल , हल्का उजाला, और ठंडी हवा समंदर का किनारा इस पार  से उस पार कुछ नहीं दिख रहा था.……  आसमान और उफान मरता समंदर और उसका शोर। मैं जैसे खो गयी दूर से टीले  पर  बैठ …चुप चाप …अकेले एक  टक  समंदर को देखने लगी। समंदर को देख  मन मैं उमड़ रहा उफान  आँखों से बरस पड़ा कब पता न चला …… i was blank totally blank..  मनो बातें कर  रही थी समंदर से जिसे पहली बार देखा था … पूछ रही थी समंदर से इतने विशाल हो क्या इतनी  गहरायी है तुम में की समां जाये मेरे कुछ दर्द बोलो ना … कब आँखों से आंसूं बहने लगे कुछ पता नहीं चला मैं जैसे होश मैं नहीं थी मनो सागर मुझे सांत्वना दे रहा हो लहरों की वो आवाज़ की हूँ में यहीं, अतह  गहरायी समेटे सामने दो, तुम्हारे सारे दुःख, दर्द, शोभ और ले जाओ उगते सूरज की लालिमा, ये शीतल हवा, भर लो अपने  अंचल में ,मैं तुम संग और तुम मुझ संग मिल कर  कुछ ज़ख्मों को भर लें चलो आओ , रो लो जी भर के की फिर मुस्कुरा सको खिल कर छोड़ जाओ  मुझ में.……  मैं समां लूँ खुद मैं........ हंस पड़ी सोच कुछ.……  अब समझी मेरे जैसे लोगों के आंसूं से तो नहीं बने हो तुम । इसलिए शायद दोनों के पानी का स्वाद खारा सा है  ।उस दिन मनो पा लिया मैन कुछ। ....... हाँ बहुत कुछ .......!!!!!


we were #together "me n the ocean....!!!!" I found something....I realize something ....within me...those moment had healed me...very auspicious moment of my life thanks https://housing.com/   [ housing.com ]
to get me into those beautiful memories once again...!!!


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