विद्रोह
जब सुख चुके होंगे...तब होगा विद्रोह...
औरों के भीड़ मे अपने अस्तित्व को जब,
ना पाने का हो आभास तब होगा विद्रोह.....
ना पाने का हो आभास तब होगा विद्रोह.....
जब सूरज की लालिमा भी मन के अन्धकार
को उज्जवल न केर पाए तब होगा विद्रोह.....
को उज्जवल न केर पाए तब होगा विद्रोह.....
कभी सुन पाए गर अपने अंतर्धवानी को
तब कहीं होगा विद्रोह.....
सुख शांति की कामना लिए
जब मन अडिग हो
अपने कर्मों पर अथाह विश्वास हो
अपने कर्मों पर अथाह विश्वास हो
और ह्रदय में सत्य का वास हो
तब कहीं हो पाए गा विद्रोह..................!!!!!!!!
Hii Minuuu....bohot dino ke baad aj teri kavita padi bohot khubsurat....mujhe bohit achi lagi....
ReplyDeletedarling its just fabulous......tu to sach ki hi kavi ban gai..............jaane kab hoga ye vidroh...lv u honey
ReplyDeletethanx ayantika.....thanx for visiting the blog...
ReplyDeleteyoun hi ate rehna...!!!
hey komal..thanx for encouragement yaar..!!! keep coming here..!!!!
ReplyDeleteभावनाओ का ह्रदय से बह आना भी तों एक विद्रोह ही है,और ये विद्रोह शायद आपके संग कहीं खो जाती है...यही तों कारण है कि आपके इस विद्रोह के अंतर्ध्वनि से हम विमुख हैं, यूं ही लिखा कीजिये ...बहुत खूब लिखती हैं आप... वाह क्या बात कही है ...
ReplyDelete" कभी सुन पाए गर
अपने अंतर्धवानी को
तब कहीं होगा विद्रोह....."
धन्यवाद आपका जो यहाँ आये और इन पंग्तियों को पढ़ा
ReplyDeleteस्वागत आपका छोटी सी कुटिया मैं ....इसी तरहा यहाँ
आते रहें और हमे लिखने को प्रेरित करते रहें,,,,
और हाँ अगले पोस्ट मैं अपना नाम लिखना मात भूलियेगा,,,,,;-)
जब तक आप अपने भावनाओं से विद्रोह कर शब्दों कों पीरोतीं रहेंगी हम अशांत मन कों यूं शांत करने आते रहेंगे ... नाम तों अक्षरों में पीरा एक शब्द है, जो अपना तों है अपनों का दिया हुआ है ... नाम का क्या....यूं ही समझ लिया करे ... ;-)
ReplyDeleteजब प्रेम की तलाश में
ReplyDeleteमन की ध्वनि हो जायेगी शेष
तब होगा .......विद्रोह...!!!
कविता ने जीवन का विद्रोह जीवंत कर दिया ||धन्यबाद ... सत्या व् अयांतिका झा