23 September 2012

मनुष्य सुख-दुःख का व्यापारी


"मनुष्य सुख-दुःख का व्यापारी"

मनुष्य सुख-दुःख का व्यापारी 
हेर चीज़ यहाँ पर बिकती है 
सुख यहाँ है कितनी सस्ती  ..
शर्त यही है...हाँ हाँ !!! शर्त यही है
सुख पाना है तो दुःख देना होगा 
मोल लगाओ बस सही मोल लगाओ
जीवन के इस मंडी में


मनुष्य सुख-दुःख का व्यापारी 
हेर चीज़ यहाँ पर बिकती है 

कभी पैसे से ,कभी सपनो से, कभी अपनों से ,
कभी दूजों से तो कभी शब्दों से,
मोल लगाओ बस सही मोल लगाओ
जीवन के इस मंडी में...

समझ न सका जीवन का मोल 
और बेच दिया सुख को दुःख के बठखरे से तोल,
घेर लौट गया जब सब कुछ वह तोल
हंस न सका... रो भी न सका 
जब देखा अपने बटवे को खोल

एक चवन्नी भी न थी,,न थे कोई सपने,,
और न थे कोई अपने..और न ही कोई पराये..
सब कुछ गवां चूका था...दाव पर सब कुछ लगा चूका था..
हर गया सब...हर गया.....

हेर चीज़ यहाँ कब बिकती है??
सुख का न कोई मोल,
उसे किसी तराजू से न तोल

मनुष्य तू सुख सुख दुःख का व्यापारी नहीं...
हेर चीज़ यहाँ पर बिकती नहीं...
तू न मोल लगा...
अब और ना मोल लगा....
जीवन है कोई मंडी नहीं.... !!!

2 comments:

  1. Excellent....kya comment karu mai....utni capability nehi hai mujh mei....mujhe nahi tumhari tarah hindi likhni ati hai nahi utni achi kavita sirf ye kah sakti hu ki ''apka koi jawab nehi''....
    Ayantika

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  2. Apki nazron mein khuda ki parchai hai, duniya ki kashmakash se apko shikayat hai, apke nazariye ki kya hum tariff karein, apki nigahon se beparda kuch bhi nahi hai.

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