21 February 2013

वर्षा.....



बदरा ने आज फ़िर ली अंगडाई
बरखा फ़िर आज लौट आई
फ़िर ज़ोर की गर्जन कानों तक आई
जैसे बदरा ने बरखा को आवाज है लगायी

दोनों के मन मे एक ही आस
मिलन की बेला मे बुझ जाए ये प्यास

पल पल जला हूँ बिरहा की अग्नि मे
मैं भी कुछ ऎसी थी उस अनजाने से नगरी मे

न भूख थी न प्यास थी तो बस मिलने की आस
कहने को सब पर हूँ मैं बरसती
पर केवल तुमसे मिलने को ही हूँ मैं तरसती

बरखा ने जब यह व्यथा सुनाई
बदरा की भी आंखे भर आयी
गरज उठा बदरा यह देख
बरस पड़ी बरखा यह देख

दोनों ने व्याकुल मन से व्यथा सुनाई
तभी तो वर्षा इस धरती पर आई

1 comment:

  1. awesum 1 darling........mann ki bahwnaon ko jaise kagaz par utar dia ho kisine......luvd it....

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