मेरे बचपन का वो आंगन
मेरे बचपन का वो आंगन
मेरे बचपन का वो आंगन
भीनी यादों की वो खुशबू,,
अंगडाई लेते हुए सपने
थामे ममता का वो दामन
कभी माँ की वो लोरी
कभी यूँ ही मनाना
जाके फिर रूठ जाना
बदल में गूम हो जाना ,,,
तो कभी तारोंन को गिनना
चंदा मामा का आना और किस्सों का रुक जाना
खुले असमान को यू तकना
गिरते तारों को भी हो मनो लपकना
मेरे बचपन का वो आंगन
भीनी यादों की वो खुशबू
वही रास्ता वही घर है
वही आंगन वही चौबारा
वही संध्या की है लाली
वही सूरज का चमकना
वही चिड़ियों का चेहेकना
मनो कल-परसों की कहानी
सब वही है और वहीँ है..
फिर भी कहीं बदली है मेरी कहानी ......
रंग बिरंगे उन चित्रों की सैर ,,
फिर कभी रंगों को समझना
और उन चित्रों को भरना
काश रख पाती मैं गर इन रंगों की समझ
न बदलती मेरी कहानी होती कुछ तो सेहेज
मेरे बचपन का वो आंगन
भीनी यादों की वो खुशबू
जहाँ मैंने लड़खड़ा कर कभी चलना था सिखा..
कभी गिर जो गयी तो फिर उठाना भी सिखा
सोचती हूँ खूब रोई भी होगी गिरी थी कभी जब
फिर सोचती हूँ......!! न गिरती कभी गर उठ कहाँ पाती ज़मीं पर
ज़िन्दगी रूकती कहाँ है ,ये कभी थकती कहाँ है
उठ खड़े हुए जमीं पर तो क्या ..?
अब तो दौड़ना भी है बाकि ....
अब तो दौड़ना भी है बाकि ....
तब कहाँ होगा मेरे बचपन का वो आंगन..
रह जाएगी तो बस यादों की भीनी खुशबु .....!!!!!