25 February 2017

THE COCOON......!!

We born, we crawl, v grow, we connect,
v start understanding, then v become mature or sometimes not.
If mature then pushed, pushed enough to handle .
Yes to handle the uncertainties,
some time estimated and mostly surprised.

In both the cases v mortals  have been thought
to become perfect to fight ,not to surrender, not to give up,
not to cry, not to express, not to be the one we are
but to be the one we are not.
Is that the definition of living?
or may be the definition of surviving?

M confused or is that an art of survival for living?
V human are just a living thing, waiting to die someday.
Oohh wait..!! no no that's not possible
I guess v have forgotten that v r not immortal.

All these thoughts are flowing inside since I have visited a funeral of my closed one.

I often think where do we want to reach ? what are we chasing?

I guess I know we always want to be in a cocoon of comfort followed by a sequel of betray, conspiracy, exploitation, revenge, obsession and the acts of selfishness.

But in real we are chasing our own deed what an irony, isn't it??

2 December 2015

एक दिन यूँ ही...!!!

रिश्तों के अर्थ बदल जाते हैं
कभी समझी न ये की कैसे बदलते हैं
पर सच है की बिलकुल बदल जाते हैं। 

एक दिन यूँ ही कुछ सवाल सा कौंधा  की
मेरे घर से निकलती है एक पगडण्डी
जो सड़क से जा कर के मिली है
पहली दफ़ा जब चली थी लगा, कहाँ ले चली है ?
पर भरोसा दिलाया जब सड़क से मुझको मिलाया

कई मौसम गुज़रे , कई गड्ढे भी खुद गए
पर  उस पगडण्डी ने फिर भरोसा दिलाया
और हर बार सड़क से मुझको मिलाया

अदभूत है न। .... इतनी कठिनाइयां आयीं होंगी 
हम तुम तो फिर भी बदले पर बरसों से बनी ये पगडण्डी
इसके अर्थ कभी भी क्यों ना बदले ??

परन्तु मनुष्य का स्वाभाव ही यही है
कहते हैं जिज्ञासी बड़ा है ,खुद पर घमण्ड  भी बड़ा है
अपने सुख सुविधा स्वरुप
रिश्तों केअर्थ को भी दिया है इसने कई सारे रूप
कपटी है और है बहुत कुरुप
चयन करता है अपने लाभ स्वरुप

मुखौटा लगाये अपने कुरूप मुख मंडल को छुपाये 
भ्रमित करता हुआ स्वयं को भी
और स्वयं से जुड़े मनुष्यों को भी

मुर्ख है.. .!!! जनता नहीं की शब्दकोष  में  ये  रिश्तों के अर्थ
ही हैं जिनका समानार्थक कुछ भी नहीं ,
बस एक ही मूल अर्थ है
अपना सर्वस्व निछावर करदेना
न कोई चयन ,,,न कोई लाभ की अपेक्षा ,,,
की किस रिश्ते नाते का भाव है कितना
मन का मिलना ही सर्वस्व क्यों नहीं होता??
कितना कपटी है मनुष्य !!!
इस अर्थ को समझने के लिए एक जन्म शेष नहीं ऐसा कहते है
 अदभूत विडम्बना है की  मानते  नहीं , की जीवन तो बस है एक
और इस अर्थ का कोई समानार्थक  है  कहाँ ?? ये भी तो देख .!!!!

16 May 2015

Alladin ka chirag

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13 April 2015

A Wanderer .....!!!

A Wanderer .....!!!

Wherever i go i find myself connected with my surroundings.  It seems there are beautiful stories inside each n every scenes i am passing through, lots n lots of hidden stories,  ready to come out of their untouched zone.  Sometime its a story of a boy whom i often see in the road side studying under a streetlamp... or a group of kids living in small tents on the pavement & singing "veer tum bhadhe chalo dheer tum badhe chalo" (a patriotic poem) or an old man carrying a basket of responsibilities on his head. I travel aimlessly people say but i wander to touch the untouched. Faces changes....even the story changes but what is constant is the CHANGE...!!!

All these undiscovered stories sometime poke me and says  i am  ready ...!!! yes ready...!!! To be a part of your stories...!!! & the best way to pen down ,Right Away Right Now. So it stimulates me to take out my ASUS Zenfone 2 smart phone & start scribbling or capturing. What drives me then is the stories.I give a dam ,weather its day or night, i m on wheels or walking  all i want to do is....!!! To capture them and make a bouquet of beautiful stories .Hence i am fully dependable on my ASUS Zenfone 2- my buddy. Whenever i have to explore these untold stories my buddy my ASUS Zenfone 2 is my trusted companion ...!!

Its power packed most incredible features makes me feel well equipped to explore my world of wandering....!!! ASUS ZenFone 2 is world’s 1st smartphone with 2GB RAM  - I can creatively do as much as scribbling I want.explore my world of creation coz it gives me the freedom ..yes a freedom to think beyond the limit. The most fantastic thing is the technology makes the battery super strong up to 60% in not more than 39 minutes, now i can fly high n high n high i feel like i can now touch the sky....!!! A perfect blend of me and my ASUS Zenfone 2 . The superb technology I know it won't stop me to touch the untouched ,we are so compatible.

ASUS Zenfone 2 PixelMaster camera, high-resolution photos with zero shutter lag, capture up to 400% brighter photos at night, low-light scenes, without the need for a flash. So who cares weather its day or night why would i wait for a perfect scene My ASUS Zenfone 2 makes every single scene a perfect scene. Ohhh I am so dependable my long lasting my trusted companion in the journey of creation. This is the best-est Smart phone I have ever experienced.

 "ASUS Zenfone 2 - My trusted companion so far, a journey with you is so meaningful ..."!!!

- From A Wanderer

http://www.asus.com/Phones/ZenFone_2_ZE551ML/.

Thank you ASUS Zenfone 2 for an opportunity to express my story..!!






http://www.asus.com/Phones/ZenFone_2_ZE551ML/.

25 March 2015

नन्ही सी मुस्कान....!!!!


मेरी ज़िन्दगी !! हाँ ज़िन्दगी चल रही थी सीधी सपाट रेल की पटरी सी दूर से देखो तो दोनों छोर जैसे  मिल  गए हों पर वास्तव  कुछ और है ......!!!

ऑफिस से घर और घर से ऑफिस , रोज़ वही सड़क, वही पेड़, वो अनजान लोग हर दिन एक ही जगह दीखते।  बस से ऑफिस जाते हुए ये मनो रोज़ का नज़ारा था ऑफिस बड़ी बोरियत सी ज़िन्दगी थी पर चैन घर पर भी कहाँ था ४-५ दिनों की लम्बी छुट्टी में  तो मनो दीवारें घूरने लगती हैं और दरवाज़ा पूछता है कब निकलोगी ?

वैसे अकेली रहती हूँ , आत्मनिर्भर हूँ , थोड़ी स्वाभीमनी भी, अपने आत्मा सम्मान से बहुत प्रेम है, तो मित्रों का चयन भी बड़े धयान से ही करती हूँ , 34 की हो गयी हूँ  , single हूँ, कुछ दिन पहले ही मिन्नी  (मेरी बचपन की दोस्त) की बेटी से मिली 6 साल की है बड़ी प्यारी जब भी जाती हूँ लिपटी रहती है मुझसे , कभी कहानी , कभी chocolate की ज़ीद , कभी न मनो तो प्यारे से आँखों में ढेर सारा आँसू  भर कर रूठ जाती , फिर तो मांग पूरी करनी थी, तो मासी  बोलकर लिपट जाती, रात भर जागती लड़ती अपनी मम्मी से की please मासी के पास सोने दो। बहुत हंसी अति मुझे और मज़ेदार बात ये की मुझे और मिन्नी को बातें ही नहीं करने देती इतनी शरारती थी। बेचारे हम एक दूसरे का चेहरा देखते और उसकी मम्मी उसे ग़ुस्से से देखती और वापस मेरी हंसी निकल जाती, फिर हम सब खिल खिला उठते।  १-२  दिन का ही जाना होता था साल में वो पंजाब में रहती थी और मैं शिमला में।  फिर जाने के दिन मिन्नी की बेटी लिपट कर आंसूं बहती , मत जाओ ना मासि  please , मैं बदमाशी नहीं करुँगी।  पगली थी पर बहुत प्यारी , उसे बहलाती फुसलाती अगली बार ढेर सरे गिफ्ट्स का प्रॉमिस कर के भारी मन से विदा होती।

उस नन्ही सी बच्ची का मोह मुझे हर साल उससे मिलने को विवश कर जाता , उसकी मुस्कान में अपने जीवन की छाँव मिलती मुझे।

कभी कभी प्रश्न उठता मन मैं जीवन में प्रेम में तो सफलता नहीं मिली, फिर विश्वास मनो काम सा गया विवाह में , अब तो उस विश्वास की कब्र भी खुद गयी है।  देखते देखते  जीवन के कई साल अकेले बिता लिए , कोई क्षोभ  नहीं है मुझे बस आश्चर्य  है !!!!

क्या जीवन मैं किसी पुरुष के होने से ही मातृत्व की इच्छा पूरी  हो सकती है ?? और अगर कोई ना मिला तो ?
जीवन के इस अध्भूत अनुभव  को क्या कभी सार्थक अर्थ  नहीं मिलेगा?  मन में एक प्रबल इच्छा ने जन्म लिया
दृढ निश्चन ने आगे बढ़ने की प्रेरणा । जीवन के इस अनुभव को मैं  मन से अपनाना चाहती  थी।  मैंने तय कर लिया - "I will become a Single Mother"...!!!

जुट गयी प्रयास में ..... और जाना की हो सकता है IVF  के माध्यम से … डॉक्टर्स से सलहा ली और उन्होंने भी ढाढस बाधाया, इस सब से पहले घर - परिवार को मानना था , दोस्तों को समझाना था की उनकी ज़रूरत है  मुझे अकेले नहीं कर सकती मैं .... मुश्किलें आयीं क्यूंकि हमारा समाज ऐसे निर्णय को स्वीकार नहीं करता और ना ही स्वागत। पर मैं कहीं गलत नहीं थी।  कहीं  भी नहीं। जीवन इस निर्णय के सामने आसान तो नहीं होगा पर मैं निकल पड़ी थी अपने मातृत्व की लालसा को पूरा करने स्वछंद , लहरों से लड़ते झगड़ते।

और आज इस निर्णय को लिए ३ साल हो गए हैं, मेरी बेटी की प्यारी सी मुस्कान मुझे उसके होने और अपने निर्णय पर गर्व का अनुभव दिलाता है।

A big Thanks to https://housing.com/.... to keep us inspiring to write....;) :) Thanks a tonnnnnn...!!!



एक सुबह की कहानी … !!!

एक सुबह की कहानी … !!!

ये कहानी एक आम सुबह की है। कुछ दिनों से ऑफिस में कुछ गरमा गर्मी मची है।   सुबह उठते ही ये ख्याल आता की जंग का एक और दिन ....!!! थोड़ी मायूस सी थी वो सुबह।  उठते ही ख्याल आया, उफ़ फिर वही मारा मरी की ज़िन्दगी ,  दुःख ,  कलेश , घृणा  से जुंजति रोजी रोटी की दुनियां। कहने को तो ऑफिस मैं काम करते हैं पर वो जगह किसी जंगल से कम नहीं , हाँ वही जंगल जहाँ हर ताकतवर जानवर छोटे और कमज़ोर जानवर को खा जाता है।
बचने  का एक ही उपाय है,  खरगोश बनना पड़ेगा, हाँ वही खरगोश जो  लोमड़ी  को अपनी बुद्धिमानी से हरा दिया करता था बचपन की उन कहानियों में। हर दिन का सफर बस से ही तय किया करती थी । कुछ खोयी खोयी सी थी मनो तूफान सा उठा हो मन में और हलचल मचा रहा है। गाने सुनते सफर अच्छा काट जाता था पर उस दिन  वो भी नहीं भा रहा था, सो खिड़की से बस यूँ ही आँखें बहार झांक रही थी।

सहसा एक दृश्य ने मुझे आकर्षित किया - " एक व्यक्ति बैसाखी लिए, हलके मैले कपडे पहने इतनी सुबह रास्ता पर करने की रख देख रहा था लगा की उसे भी कहीं जल्दी पहुंचना था", यूँ ही सवाल आया मन में - क्या काम होगा ?जो सवेरे - सवेरे निकल गया, साथ किसी को लेलेता अकेले क्यों? ऐसी क्या व्यस्तता थि ?

प्रश्न मन में लिए गाड़ी कुछ दूर चली ही थी की - " कुछ लोग बड़ी मेहनत से माथे पर गन्दा मैला लिए सुबह सुबह शेहेर साफ़ कर रहे थे, न तो उन्हें घृणा हो रही थी, ना कोई  क्षोभ , ये शायद उनके रोज़ी रोटी का उपाय था।  ये तो इनके परिश्रम की कहानी थी की इतनी सुबह सुबह वो निकल पड़े अपने जीवोपार्जन के जुगाड़ में।

मनो किसी ने झकझोड़ दिया मुझे।  आज मेरी यात्रा का ये अंतिम सिख नहीं थी कुछ कहानी और बाकि है -
"एक बूढी औरत उम्र काम से काम 75 -80 . माथे पर एक बड़ा सा टोकरा लिए कुछ बेचने निकली थी , अब धूप भी काफी तेज़ हो चली थी गर्म का महीना था , लाठी का सहारा ही था बस, मन जैसे कचोट दिया इस दृश्य ने की कैसा बेटा होगा, कैसी बहु , या पति की इन्हे इतना संघर्ष करना पड़ रहा है, या फिर क्या कोई नहीं है जो इनसे  ज़िमेदारी का बोझ लेले इस उम्र में ?

आँखें नाम सी हो गयी गयी थि। पर एक बची को देख मुस्कुरा उठी मैं  एक छोटी सी skirt , head ribbon, white shirt , अपनी माँ के साथ थी शायद बस की प्रतीक्षा कर रही थी , बच्चों की हंसी देख मनो मुग्ध हो  हूँ में, पर ये क्या ?कुछ पल बाद महसूस हुआ की वो पयरि सी बच्ची एक "special child " थी माँ का हाथ थामे  सुबह सुबह तैयार हुए बड़े उत्साह से बस की प्रतीक्षा  कर रही थी , अजीब सा सहस दे गयी मुझे उसकी भोली सी मुस्कान....!!!!

 मैं बस हंस पड़ी..... !!! सच हंस पड़ी खुद पर।  खुद के क्षोभ पर,  मेरी सुबह की मायूसी पर , मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था , भगवन की दया से सब कुछ था फिर भी मैं दुखी थी मायूस थी, जो है उसके लिए कहाँ सोचा ? जीवन के छोटी मोटी समस्या को एक विशाल काय रूप गढ़ दिया था मनो।  उस वृद्धा , वो श्रमिक , वो अपांग व्यक्ति , और उस बच्ची की मुस्कान ने मनो मेरी आँखें खोल दी।

 एक व्यंग कास गए मुझ पर और शायद जाते जाते ढाढस भी बंधा गए की लेहलों का जो डांट कर सामना कर जाये वही विजयी कहलाता है।  उसकी अस्तित्व की गाथा मनुष्य स्वयम लिखता है...... खुद गड़ता है।  जो है पास ,जो मिला है ईश्वर से, उसका सम्मान करना , समस्या का सामना करना जी जीवन है।



"A big thanks to housing.com to encourage & motivate us to write..!!! :) :)
https://housing.com/lookup.





22 March 2015

Khushiyaan...!!!


#Happinesstome  

वैसे देखा जाये तो ख़ुशी के कई रूप हैं कई रंग हैं।  हेर किसी के लिए ख़ुशी की अलग परिभाषा है।  जो पल मन को गुद - गुदा जाये वो ही ख़ुशी का माध्यम बन जाता है।  मेरे लिए ख़ुशी का न तो कोई निश्चित रंग है ना तो परिभाषा , ये तो बस एक एहसास है जो बस गुद -गुदा जाता है। 

जब चलना नहीं सीखा ,माँ ने उंगली थमी तो मुस्कुरा दिया
बाबा ने जा घोड़े की सवारी करायी तो भी मस्ती में  हंस पड़ी
भाई को जब भी चिढ़ाया तो भी मेरी ख़ुशी का अलग ही स्वाद था
दोस्तों की यारी  और बिन बात उनकी  बेहिसाब गली का भी स्वाद काफी चटकारा था
ज़नदगी  पन्नों को जब कभी भी पलटा तो खुशियों का एक अदभुत ही आनंद रहा
 यादों के  कुछ पन्नो को पलटा तो खुशियों की तिजोरी मिली , कुछ यादें अनछुई पड़ी थी
कच्चे - पके पगडंडियों से गुज़रते , कुछ खेतों में  मिलते, कुछ छुपन छुपाई के खेलों में भी दीखते,
मनो पिटारा खुल गया हो और मैं समेत रही हूँ कई यादों के गुलदस्ते।  अपनी झोली में संभाले उन्हें सहेज रही हूँ।  फिर जब बड़े हो चले तो class room की लुकचुप शरारत, बिन बात दोस्तों से झगड़ना फिर मानना ,  परिक्षा के  वो दिन ……हफ्ते दस दिन पहले पूरी ज़ोर - शोर की पढ़ाई फिर जैसे तैसे पास होजाना :) ;) अलग ही आनंद था। 
कभी लगता है ज़िन्दगी - अलग अलग फलों से भरी टोकरी सी है जिसमें छोटे-बड़े कई तरह के फल हैं ,जिसमें  छोटी - बड़ी हेर तरह की ख़ुशी के साथ ज़रूरी है।  बस हमे तय करना है किसे कब और कहाँ सजाया जाए।  तब जेक कहीं तैयार होगा.... गुलदस्ता ...!!! हाँ खुशियों का गुलदस्ता....!!!  
 मेरी खुशियों का गुलदस्ता कुछ यूँ तैयार हुआ -
मेरे बचपन का वो आंगन 
भीनी  यादों की वो खुशबू,,

अंगडाई  लेते हुए सपने 
थामे  ममता का वो दामन
कभी माँ की वो लोरी  
कभी यूँ ही मनाना 
जाके फिर रूठ जाना

कभी आखें यू मिची उन 
बदल में गूम हो जाना ,,,
तो कभी तारोंन को गिनना
चंदा मामा का आना और किस्सों का रुक जाना
खुले असमान को यू तकना
गिरते तारों को भी हो मनो लपकना 

 मेरे बचपन का वो आंगन
भीनी  यादों की वो खुशबू

वही रास्ता वही घर है
वही आंगन वही  चौबारा  
वही संध्या की है लाली 
वही सूरज का चमकना
वही चिड़ियों का चेहेकना 
मनो कल-परसों की कहानी
सब वही है और वहीँ है..
फिर भी कहीं बदली है मेरी कहानी ......

खूब याद है पढने  से जी चुराकर 
 रंग बिरंगे उन चित्रों की सैर ,, 
फिर कभी रंगों को समझना 
और उन चित्रों  को भरना 
काश रख पाती मैं गर इन रंगों की समझ 
न बदलती मेरी कहानी होती कुछ तो सेहेज

 मेरे बचपन का वो आंगन
भीनी यादों की वो खुशबू


जहाँ मैंने लड़खड़ा कर  कभी चलना था सिखा..
कभी गिर जो गयी तो फिर उठाना भी सिखा 
 सोचती हूँ खूब रोई भी होगी गिरी थी कभी जब 
फिर सोचती हूँ......!! न गिरती कभी गर उठ कहाँ पाती ज़मीं पर 
ज़िन्दगी रूकती कहाँ है ,ये कभी थकती कहाँ है
उठ खड़े  हुए जमीं पर तो क्या ..?
अब तो दौड़ना भी है बाकि ....

तब कहाँ  होगा मेरे बचपन का वो आंगन..
रह जाएगी  तो बस यादों की भीनी खुशबु .....!!!!!
 Thanks Coco-Cola India ...!!!